Saturday, October 25, 2014

क्या आपने सिगरेट कभी पिया हे ?

                                                                                                                 मिति : २०७१–०७–०९








क्या आपने सिगरेट कभी पिया हे ? अब झठ मत बोल्ये, कम से कम एकबार तो हरकोहि इसका टेस्ट कर लेता हे, अब आप क्याफे या रेस्टुरेन्ट नहिं जाते हे तो आपको ये सिन देख्नेको नहिं मिलेगा, पर जब आप उधर जाऐंगे तब आपको पता चलेगाकी लड्की लोग भि सिगरेट पिती हे –खुबसुरत लड्की लोग ।

हाँ, उसलोग खुलकर लड्को के तराह सब के सामने हरजगाह नहिं पिति, जैसे खुला क्याफे, या आप केह सक्ते हे खुली जगाह पर, बल्की खास दोस्त या एकेली मे पि लेती हे ओर अप्ने ख्यालो मे डुब जाती अ‍े ।


एकबार मे वसन्तपुर घुम्ने के लिए गया था कुछ अच्छा सा टपिक मिल जाए लिख्ने के लिए, ये सोचकर गया था पर कुछ नहिं मिला इन्ट्रेस्टिङ्ग । तो मे गया उपर सिढीं चढकर एक मन्दिरका बरान्दा मे बैठकर नजारे चैन से देख्ने के लिए ।


कबुत्तरका आना जाना । उसकी गर्लफ्रेन्डको इम्प्रेस कर्ने के लिए मस्का लगाना, वो नौटन्की कर्ती रहेती हे, ओर उसका दिवाना कबुत्तर उसका पिछे पिछे उसको अप्ना प्यार जताते रहाँ ।


आखिर मे वो मानगयी ओर उसलोग अप्ना मुहब्बतका बोर्डरको खुला ट्रान्जिट बना दिया– बगैर पासपोर्ट के इधर से उधर ओर उधर से इधर रोमान्सका गोलगप्पे खाने ओर खिलानेको ।


मे एक जगाह बैठकर कुछ सोच रहाँ था कि एक कपल ,उसलोग सिर्फ १८–२० के उमेरका था होगा । बैठनेका जगाह प्याक था, सब आने जाने वाले लोग कपल हि थे पर किसीको किसीका मतलब नहि था । सब लगे अप्ना कहानीको अमर बनानेके लिए जुडे हुवे थे । किसीने किसीको नहिं देखा बल्की भिडभाड मे भी सब अकेले ही अप्ना गाना गा रहे थे जैसे हम लोग गुनगुनाते हे, अप्ने कमरे मे ।


वो लड्का लड्की घुस गए बिच मे बैठनेके लिए ओर मे अनकमफर्टेबल हो गया । अरे भाई मे इधर बैठा था तरम लोग क्यू घुस गए, मेरेको चैन से बैठने दो बोल्ना चाह था तर छोडदिया, लो जाओं मोज करो शैतानो बोलकर इधर उधरका फोटो खिच्ने लगा ।


वो लड्की के पास म्यूरका पंख था, वो उससे उसका दिवानाको छ्ेड रहि थी । उसका दिवाना चुप रेहकर देख्ता हि रहाँ उसको ।


मेने अनुमान लगाया, साला ये तो लड्का हे, ओर हर दिवाने लड्केको क्या चाहिए, अरे वही तो चाहिए, जो लड्की आनाकानी कर्ती रहेती हे देने के लिए, पर होस मे जोश के साथ मख्खन लगाती चल्ती हे पर देती हि नहिं ।


ये सिलसिला चल्ता रहा ।


मेने अप्ना ध्यान दुस्रे जगाह पर लगाना चाहा ओर क्या मुडकर पिछे मेरी आँखे देख्ने लगी कि एक लड्की सायद वो १७–१८ सालकी होगी, सिगरेट निकालकर लिप ग्लस लगाया हुँवा ओठसे पकडकर लाइटर से आग लगाया उसने ओर धुवाँ मुख से उडाती रहि ओर इस दौरान उसकी आँखे मेरे पर पडि ।


मेने जल्दी जल्दी अप्ने नजरोको दुस्रे तरफ मोडा , फिर कुछ देर बाद पिछे देखा तो वो फिर कुछ ख्यालो मे डुब्के सिगरेटका रसकी मजा ले रहि थी, फोन मे सायद कुछ लिख रहि थी वो ।


उसको अंदाजा हुवाँकी मे देख रहाँ हुँ , अब मेने सोचा इधर बैठकर बिचारीको क्यू तंग करु, म उठकर निचे उतरने लगा । फिर टपिक ढुडां पर अच्छा सा लेख्नेके लिए नहि मिला, एक चक्कर लगाया पुरे वसन्तपुर मे ओर वहि रस्ता पहुँचा जीधर से मे निचे आया था – मतलब लभ कपल वाली लड्की ओर लड्का एक दुस्रेका साथ .... अब लाप तो समझदार हे, एक दुस्रेका साथ – अब ये मत केहियेगाकी आप नहिं सम्झे , बस् वहि हुवाँ जो तभी नहिं हुवा था........

 



लेखक के बारे मे

मोइन उद्दिन एक होनहार लड्का हे । बस उसकी तमन्ना हे कि उसका लिखा हुवाँ नोभेल किताब पब्लिस हो जाए । उसके लिए पबिलसरकी तलाश मे हे, अगर आप पब्लिसर हे तो हेल्प करेंगे मोइनका बुकको पब्लिस कर्ने मे ?, अगर आप बुक पब्लिसर नहिं हे तो सायद आप किसी पब्लिसरको पहेचानते होगें । बस् आप हि का साथ चाहिए मोइनको । हेल्प करेंगे नो ?


इस पते पर मोइनको सम्पर्क कर सक्ते हे : moinuddin_200000@yahoo.com

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